‘वैदिक पंचगव्य गुरुकुल’ की भूमिका
समस्त मानवजाति के सरंक्षण एवं पर्यावरण हेतु
‘वैदिक पंचगव्य गुरुकुल’ भारतवर्ष के पूजनीय संत महात्माओ, गौ वैज्ञानिको , गौसेवको एवं अमर बलिदानी राजीव भाई दिक्षित जी के सम्पूर्ण स्वदेशी एवं गौआधारित व्यवस्था को समर्पित है |वैदिक संस्कृति में गौमाता को परमपूज्य स्थान मिला है | उसे ‘मातर: सर्वभूतानाम्’ पद दिया गया है| आज से लगभग 700-800 वर्षो पूर्व तक गौमाता सभी कार्यों में महत्वपूर्ण स्थान था | चिकित्सा विज्ञान में गौ आधारित चिकित्सा एक सम्पूर्ण चिकित्सा शास्त्र था | इसकी पुष्टि विविध शास्त्र सन्दर्भ से मिलते है | आज से कुछ समय पूर्व तक गौ आधारित चिकित्सा का गोविज्ञान एक उत्कृष्ट स्थिति में था, और गोआधारित चिकित्सा विज्ञान के माध्यम से मानव रोगों पर सफल प्रयोग की पुष्टि भी शास्त्राधार है |
लेकिन आज के भारत की अगर तस्वीर देखे तो आज भारत केवल गोमांस निर्यात कर विदेशी मुद्रा पाने में लगा हुआ है, और दुनिया की नजर में आर्थिक रूप से गरीब एवं कुपोषित माना जा रहा है | देश की इस स्थिति का अनुमान सीधा लगाया जा सकता है की पंचगव्य यानि गौ से मिलाने वाले गव्यों का उपयोग बंद हो गया है, साथ ही गौ आधारित विज्ञान पूर्ण रूप से लुप्त सा हो गया है |
हर एक काल में लोगो के समझने की परिभाषा होती है | इसी परिभाषा के अनुसार गौमाता से प्राप्त गोबर द्वारा निर्मित खाद का खेती में प्रयोग करने से उच्च गुणवता का धान्य उत्पन्न होता है | इसी तथ्य का उस समय उपलब्ध साधन और प्रयोग का ही अंतिम सूक्त स्वरुप अनुभव कथन है ‘गोमय वस्ते लक्ष्मी’| इसी प्रकार गोमूत्र का प्रयोग भी पवित्रता से हो, और अनिवार्यता से हो इसी कारण ‘गोमुत्रे च गंगे’ यह सूक्त का विश्लेषण हुआ | दूध, दही, घी इसका सेवन करने से विध्या बल प्राप्त होता है | समय – समय पर लोगो ने यह अनुभव लिया है | अपनी संस्कृति एवं लोकजीवन काफी प्राचीन है | और प्राचीन समय में लोग भी ऐश्वर्यसंपन्न, स्वास्थसंपन्न थे, इसके प्रमाण है | इन सब के मूल में गौआधारित व्यवस्था विज्ञानं ही था यह बात भुला दी गयी है |
किसी भी प्राचीन संस्कृति के बारें में काल प्रवाह में कुछ बाते होती है | यह संस्कृति उत्कर्ष का शिखर प्राप्त कराती है | और उसकी उत्कर्ष में ही उसके पतन के बीज बोए जाते है | भारतीय संस्कृति का भी ऐसा ही पतन होता गया और हो रहा है | एक के बाद एक विदेशी आक्रमण हुये और समाज की संरचना अस्त व्यस्त हो गयी | विदेशी आक्रमण से इस देश में आर्थिक, सामाजिक, आध्यात्मिक , वैज्ञानिक , वैचारिक , व्यावहारिक आदि व्यवस्थाए जो की स्वावलंबी थी, वह सब परावलम्बी व्यवस्था में परिवर्तित हो गयी | इससे इस राष्ट्र का बहुत ही बडी हानी हुई | इस राष्ट्र की अनेक सभ्यताएं नष्ट हुयी, अनेक विद्याए लुप्त हुई| गौआधारित व्यवस्था भी लुप्त होने के कगार पर थी | मगर कोई भी विद्या कभी भी पूर्ण रूप से नष्ट नहीं होती | उसके कुछ न कुछ अवशेष बचें ही रहते है | समाज के अनेक लोग उस विद्या को किसी न किसी रूप में जीवित रखते ही है | प्राचीन गोआधारित विज्ञान को भी अपनी परम्पराओ द्वारा जीवित रखने का भरपूर प्रयास किया गया | उसे पुनर्जीवित करने का कार्य देश का किसान आज भी कर रहा है | भारत कृषिप्रधान देश होने के कारण पूरा कृषि विज्ञान ही गोवंश पर आधारित है | गौमाता के गोबर, गोमूत्र के खाद एवं किट नियंत्रक ने सदैव इस भूमि को उपजाऊ बनाये रखा है | गौमाता के गोबर, गोमूत्र से आज भी अनेक किसान खाद निर्माण कर करे है एवं इसका उपयोग कर किसान स्वयं सुखी और समृद्ध बन रहे है | एवं यह गौआधारित कृषि विज्ञान काल्पनिक बात न रहकर प्रयोगसिद्ध और परिणामकारक सिद्ध हो रही है | यह सब प्रयोग देख कर बहुत सारे किसान अपने खेत में इस गौआधारित कृषि व्यवस्था में कार्यरत है | ऐसे अनेक प्रयोग देख कर आने वाले कुछ वर्षों में हर एक किसान गौआधारित कृषि व्यवस्था को पुन स्वीकार करेगा एवं इस देश में गौअधारित कृषि क्रांति खड़ी होगी | कृषि विज्ञान गोवंश पर आधारित होने की वजह से कृषि के क्षेत्र में सच मायने में क्रांति करने का सामर्थ्य केवल और केवल देशी गोवंश में ही है | इसी से किसान खुद का और राष्ट्र का भला कर सकेगा | लेकिन दुर्भाग्य रहा की रासायनिक खाद के कुछ वर्षों के प्रयोग से इस देश की उपजाऊ जमीं को बंजर बनाकर रख दिया है |
इसी प्रकार वेदकाल से अभी तक भी गौमाता से प्राप्त दूध, दही, घी, ताक, मख्खन, गोमूत्र, गोबर यह सब अलग – अलग या एकत्रित होकर मानवोपयोगी बनकर स्वास्थ्य रक्षा कर रहे है | उनकी उपयोगिता को नाकारा नहीं जा सकता | गोवंश इस औषधि का जीवित औषधालय है | गोवंश से प्राप्त इस औषधि के प्राशन से लोग हमेशा से बौद्धिक व शारीरिक स्तर पर स्वस्थ्य जीवन प्राप्त करता आ रहा था | लेकिन पिछले कुछ दशको से हम गौआधारित चिकित्सा एवं कृषि विज्ञान को भूलें जिसके परिणामस्वरूप विषयुक्त वातावरण हो जाने से विषाणुजन्य व्याधियां फ़ैल गई है | जिसका समाधान भी केवल गौमाता के पास ही है |
लेकिन सवाल यह रहता है की यह सब करेगा कौन ? तथ्य यह है की आज समाजमान्य सभी पैथी के बहुतसे चिकित्सक एलोपथी की चिकित्सा में अभ्यासरत है एवं उनके पाठ्यक्रम में मूल सिद्धांत ही एलोपथी से प्रभावित है , एवं नये डॉक्टर्स भी उसी दिशा में कार्यरत है | अत: इस राष्ट्र को गौआधारित पारंपरिक चिकित्सा के इस विज्ञान के पुनर्जीवन के लिए विशेष रूप से समर्पित भाव से कार्य करने वाले एवं परंपरागत सिध्दांत पर कार्य करने वाले चिकित्सक की जरुरत है | इसी गौआधरित परंपरागत चिकित्सा में मुलभुत सिध्दांत के आगे कोई भी रोग असाध्य नहीं | और यह केवल गौमाता के गव्यों से ही संभव है |
अत: इस वैदिक गौआधारित चिकित्सा विज्ञान का प्रचुर प्रसार करने के लिए एवं शात्रोक्त शिक्षा का आधार देने के लिए ही “वैदिक पंचगव्य गुरुकुल” की स्थापना की गयी है, ताकि यह राष्ट्र सम्पूर्ण निरोगी होने के अपने लक्ष्य की और बढ़ सके |
जिस दिन गोमूत्र एवं गोबर का एक एक कण गोपालक उपयोग करने लग जायेगा, उस समय गोरक्त की एक भी बूंद भारतभूमि पर नहीं गिर पायेगी |
इस गौआधारित परम्परागत चिकित्सा विज्ञान को पुनर्जीवित करने के लिए ही ‘वैदिक पंचगव्य गुरुकुल’ पंचगव्य की अधिकृत शास्त्रोक्त शिक्षा के माध्यम से ‘गव्यर्षि’ को तैयार कर रहा है |
हमारा विषय और कार्य स्पष्ट है, भारत के गौआधारित व्यवस्था की पुनर्जीवित करना एवं करोडो भारतवासियों को सरल, सुलभ, दिव्य, सफल, सस्ती, निर्दोष, स्वतंत्र, आयुष्यकारी, महौषधि प्राप्त हो| गोपालक को पुन:वैभव मिल सके और मानव हमेशा मानव बना रहें | समस्त मानव जाति एवं पर्यावरण का सरंक्षण और संवर्धन हो और यह केवल गोवंश ही कर सकता है | तो निवेदन है की इस कार्य का आप हिस्सा बनें और अमर बलिदानी राजीव भाई दिक्षित जी के सपनों का भारत निर्माण करने के कार्य को आगे बढ़ाये |
जय गोमाता जय गोपाल |