हम क्यों बीमार पड़ते है ?
हम क्यों बीमार पड़ते है ?
हम सब जानते हैं की हमारा शरीर वात-पित्त-कफ (त्रिदोषों) के संतुलन से ही स्वस्थ रहता हैं | अगर किसी कारण से वात-पित्त-कफ का यह संतुलन बिगड़ता है तो हम बीमार पड़ते हैं और मृत्यु का कारण भी बनता है|अगर हम अपने शरीर पर ध्यान दे तो यह बिगडा हुआ संतुलन सुधारा जा सकता है| मौसम में परिवर्तन होने से भी हम बीमार बीमार पड़ते हैं| सर्दी, बरसात, गर्मी के परिवर्तन से मौसम सम्बन्धी बीमारियाँ होती हैं|जिन्हें हम जरा सी सावधानी से ठीक कर सकते हैं| अनियमित खान-पान, बेमेल खान-पान से भी हम बीमार पड़ते है| बाजारू, सड़ी गली चीजें खाने से, विपरीत आहार करने से, या अपनी प्रकृति के विरुद्ध आहार करने से भी
हम बीमार पड़ते हैं| जैसे यदि हमारी प्रकृति पित्त प्रधान है तो हम अनजाने में पित्त बढ़ाने वाला खाना खाते है और बीमारी को और बढ़ावा देते है | अपनी प्रकृति को जानकर खाना खायें तो स्वस्थ रह सकते हैं|
अनियमित दिनचर्या, जैसे देर रात तक जागना या देर तक सोना, अनावश्यक तनाव के कारण भी कई सारी बीमारियाँ होती हैं| योग प्राणायाम, आसन आदि द्वारा हम स्वस्थ रह सकते हैं| बीमार होने का एक दूसरा बड़ा कारण यह भी है कि हम आज अनाज, फल, सब्जी आदि के रूप में जो भी खा रहें हैं वह सब रासायनिक खाद और कीटनाशकों के सहयोग से पैदा किये जाते हैं| इसीलिए वह खतरनाक रासायनिक तत्त्व अनाजों के द्वारा हमारे शरीर में आते है और अलग-अलग बीमारियां पैदा होती हैं | दूध, घी, तेल, मसाले, दवाइयों में भरी मिलावट रहती हैं|
बीमारियां दो तरह कि होती है एक तो वे – जिनकी उत्पत्ति जीवाणुओं, वायरस या फंगस से होती हैं| जैसे टी.बी., टायफाइड, टिटनेस, मलेरिया, निमोनिया आदि| यह बीमारियां जल्दी ठीक हो जाती है और इनकी दवायें भी विकसित हो गयी हैं| दूसरी तरह कि बीमारियां शरीर में बिना जीवाणुओं के होती हैं और धीरे-धीरे असाध्य बन जाती हैं| क्यों कि इनका कारण पता नहीं होता इसलिए इनकी दवायें पूरी तरह से विकसित नहीं हो पायी हैं| जैसे एसिडिटी, दम, उच्च रक्तदाब, गठिया, कर्क रोग, मधुमेह, प्रोस्टेट आदि | इन असाध्य बीमारियों को ठीक करने के लिए ही स्वदेशी चिकित्सा के प्रयोग किये जा रहे हैं|